मनीष यादव छात्र जनसंचार विभाग, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्व विद्यालय ,जौनपुर
आज पूरे देश मे हिंदी दिवस बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा और मनाया भी जाना चाहिए क्योंकि यह हमारी मातृभाषा के रूप में सम्मिलित है। हर 14सितंबर को हम हिंदी दिवस के रूप में मानते हैं और हमें हमारी याद दिलाता है कि हिंदी मात्र सिर्फ एक भाषा नही ही नही बल्कि यह हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता, और प्राचीन धरोहर को जोड़ी रखी है हिंदी केवल लोगों के बीच के संचार माध्यम ही नही बल्कि लोगों को आपस में जोड़े रखने की जननी है वैसे तो हिंदी को संविधान सभा में 14 सितंबर 1949 को राज्यभाषा का दर्जा मिल गया था और खुद 1953में प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद भवन में 14 सितम्बर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दिए और तब से लेकर आज हिंदी ने बहुत लंबी यात्रा तय कर ली है।आज हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है और लगभग करोड़ों की संख्या में इसे अपनी जननी भाषा के रूप में बोल रहे हैं ,वहीं अगर बात करें डिजिटल दुनिया की तो इंटरनेट सोशल मीडिया के युग मे हिंदी का महत्व और भी बढ़ रहा है ,फ़ेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, जैसे आधुनिक स्तर पर हिंदी का लेख, समाचार,व तमाम ऐसे हिंदी शब्दों को लोगों में रुचि रख रहे हैं मनोरंजन की दुनिया मे तो पहले से ही हिंदी गाने, फ़िल्म, बिरहा, कजरी, शोहर तमाम ऐसे नृत्य रहे हैं जो केवल मनोरंजन ही नही बल्कि हमारी जननी भाषा को बढ़ावा देते आ रहे हैं।
जहा एक तरफ हिंदी को विश्व मे सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है तो दूसरी तरफ उसके सामने ऐसे तमाम चुनौती भी है जो हिंदी भाषा के स्तर को नीचा कर रही हैं। एक तरफ जहां भारतेंदु हरिश्चंद्र कहते हैं कि निज भाषा उन्नित अहै सब उन्नित को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सुल मतलब की अपनी भाषा की उन्नति ही सब उन्नित की जड़ है अपनी भाषा के बिना ज्ञान और दिल की पीड़ा कभी नही मिट सकती है। क्योंकि यह सत्य है कि उस राष्ट्र की उन्नति तब तक नही हो सकती जब तक कि उस राष्ट्र के लोग अपनी भाषा को लेकर चिंतित न हों । वर्तमान स्थिति ये है कि हिंदी दिवस के दिन हम खूब हिंदी में बात करते हैं,अपने को खूब गौरवान्वित महसूस करते हैं और इस दिन खूब हिंदी की बात करते हैं लेकिन जैसे ही दिन बीतता है फिर वही अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा समझने लगते हैं,हम आय दिन अपने बच्चों को अंग्रेजी बंडल में ऐसे लपेट रहे हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रख रहे हैं कि उनका अपनी मातृभाषा से कुछ भी लेना देना नही है बच्चें जैसे ही बड़े होते हैं उनके परिवार में सभी अंग्रेजी को सिखाने में लग जाते हैं मम्मी के जगह मॉम, पापा की जगह डैड तमाम ऐसे शब्दों को प्रयोग करते हैं जहाँ हिंदी को नीचे दब जाना पड़ता है मैं ये नही कहता कि आप अपने बच्चों को अंग्रेजी न सिखाये,अंग्रेजी विद्यालय में न पढ़ाए,अंग्रजी में बात करना न सिखाएं आप सब कुछ बताएं लेकिन प्राथमिकता अपनी मातृभाषा को दें उसके महत्व को समझें। यह भी बात सत्य है कि समय के हिसाब से भाषा मे परिवर्तन आता है लेकिन यह भी सत्य है कि अपनी जननी भाषा के बिना आपकी कोई विशिष्ट पहचान नही बन सकती है। आज की स्थिति ऐसी बन चुकी है कि आयेदिन खबरों में ये सुनने को मिलता है कि मराठी न बोलने पर युवक को पीठा, बंगाली न बोलने पर मिली तालिबान की सजा, इससे पता चलता है कि समाज मे भाषा को लेकर कितना विवाद है कहाँ जा रही लोगों की मानसिकता? वहीं हिंदी उच्च शिक्षा विज्ञान औऱ तकनीकी क्षेत्र में अभी भी बहुत पीछे रह गई है और इन सभी क्षेत्रों में अंग्रेजी का दबदबा है,लगभग सारे उच्च शिक्षा की किताब व विज्ञान खोज की सारी किताबें अंग्रेजी में ही लिखी गईं हैं बड़े बड़े शहरों में युवाओं के बीच अंग्रेजी को ही भाषा मान लिया गया है हिंदी को केवल आमजन की भाषा समझते हैं जोकि यह स्थिति कहीं न कहीं हमारे मानसिकता को दर्शाती है कि हम अपने भाषा को लेकर कितना जागरूक हैं। हलाँकि मध्यप्रदेश ऐसा पहला राज्य बना है जहाँ स्वास्थ्य व अभियांत्रिकी की पढ़ाई पूरी हिंदी में शुरू हो गई है।
हिंदी को लेकर बिडंबना यह भी है कि जिस योग को एक सौ सतहत्तर देशों का समर्थन मिला है वहीं हिंदी को एक सौ उन्तीस देशों का समर्थन क्यों नही जुटा पा रही है? इसका मात्र एक कारण है लोगों का अपनी जननी भाषा के प्रति जागरूक न होना लोग यही कहते हैं कि हमसे क्या लेना देना? एक हमी ज़िम्मा लिए हैं आगे करना का ? ऐसी भावना जब मन मे लोगो की आती है तो कैसे हिंदी को समर्थन मिल पायेगा.?
आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हम हिंदी को लोगो की भाषा से ज्ञान की भाषा कैसे बनाये। इसके लिए सरकार को भी चिंतित होने क विषय है सबसे पहले तो शिक्षा व्यवस्था में हिंदी माध्यम को मजबूत बनाना होगा क्योंकि शिक्षा की ऐसी ताकत है जो लोगो को किसी न किसी रूप में अर्जित करनी पड़ती है जिस तरह मध्यप्रदेश में सारी पढ़ाई अब हिंदी में कर दी गई गई चाहे वह स्वास्थ्य सम्बंधित हो या अभियांत्रिकी से हो वैसे हर तरह विज्ञान तकनीक और उच्च शिक्षा की किताबें हिंदी में लाई जाएं ।
दूसरी तरफ सोशल मीडिया,आधुनिक स्तर पर हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए लोगों को इसके महत्व और पहचान की बात बताई जाए। वहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि युवा पीढ़ी को यह बात समझनी होगी कि हिंदी बोझ नही बल्कि यह हमारे समाज, देश की संस्कृति धरोहर, परम्परा का स्वभिमान है। स्वमी विवेकानंद कहते हैं कि भारत का भविष्य युवाओं के हाथों में है यदि युवा जागरूक ,मेहनती, और सशक्त होंगे तो राष्ट्र पुनः विश्व गुरु बन सकता है युवाओं में शक्ति व आत्मविश्वास की बहुत बड़ा आर्शीवाद मिला है अगर नई पीढ़ी अपनी भाषा पर खुद को गौरवान्वित महसूस करेगा तो हिंदी का भविष्य औऱ भी उज्वल होता दिखाई देगा ।