Lok Sabha Elections पश्चिमी उप्र से उठने वाली राजनीतिक लहर का असर प्रदेशभर में पड़ता है। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पार्टी ने पहली जनसभा बुलंदशहर में सुनिश्चित कर एक तीर से कई निशानों को साधने का प्रयास किया है। राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े सारथी रहे पूर्व सीएम कल्याण सिंह की धरती बुलंदशहर से नरेन्द्र मोदी रामलला को याद कर बड़ा भावनात्मक ज्वार खड़ा करेंगे।
Lok Sabha Elections: ध्रुवीकरकण की धुरी पर घूमती पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति बड़ी करवट ले सकती है।(File Photo)
संतोष शुक्ल, मेरठ। ध्रुवीकरकण की धुरी पर घूमती पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति बड़ी करवट ले सकती है। अयोध्या में श्रीरामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के बाद नए तेवर के साथ बुलंदशहर जनसभा करने पहुंच रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक तान से चुनावी समीकरणों में हलचल तय है, वहीं विरोधियों के हाथ से मुद्दे भी उड़ सकते हैं। पूरब से पश्चिमी उप्र को जोड़ने वाले मोदी मंत्र पर सबकी दृष्टि होगी। 1991 के बाद पश्चिमी यूपी में एक बार फिर रामलहर की तरंगें ऊंची प्रतिमा कमउठीं तो भाजपा 2014 जैसा प्रदर्शन दोहराने में सफल हो सकती है। दस वर्ष पहले नरेन्द्र मोदी की मेरठ और बुलंदशहर की जनसभाओं ने चुनावी मानचित्र बदला था।
पश्चिमी उप्र से उठने वाली राजनीतिक लहर का असर प्रदेशभर में पड़ता है। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पार्टी ने पहली जनसभा बुलंदशहर में सुनिश्चित कर एक तीर से कई निशानों को साधने का प्रयास किया है। राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े सारथी रहे पूर्व सीएम कल्याण सिंह की धरती बुलंदशहर से नरेन्द्र मोदी रामलला को याद कर बड़ा भावनात्मक ज्वार खड़ा करेंगे। मोदी कई नए तीर छोड़कर विरोधियों को चौंका सकते हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वह पश्चिमी उप्र में ध्रुवीकरण की काट में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का तार छेड़कर विरोधियों के लिए नया चक्रव्यूह रचेंगे। जनसभा में मोदी रामलला, सनातन धर्म, चंद्रयान, आदित्य-एक समेत राष्ट्रगौरव के कई विषयों का स्पर्श करते हुए पश्चिम यूपी के स्थानीय बिंदुओं को भी समेटने का प्रयास कर सकते हैं। पश्चिमी उप्र से बड़ी संख्या में युवक सेना एवं अन्य पुलिस बलों में सेवारत हैं।
जातीय तटबंध तोड़ने पर होगा फोकस
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों की चार जातियों का दांव खेलकर विपक्षियों का ओबीसी कार्ड फेल कर दिया। वह पश्चिमी उप्र में जाट-गुर्जर, ओबीसी और दलित में बंटे वोटों का एक छत के नीचे लाने का अहम प्रयास कर सकते हैं। रालोद पहलवानों और खेतीबाड़ी के मुद़दों के जरिए युवकों व किसानों को साधने में जुटा है, वहीं सपा से गठबंधन है। बसपा स्वतंत्र लड़ेगी, जबकि कांग्रेस अब तक असमंजस में है। पश्चिमी उप्र की कई सीटों पर दलित एवं मुस्लिम मिलकर भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं, जिसे रोकने के लिए पार्टी कोई विशेष रणनीति तय करेगी।
2014 से पश्चिम के पास जीत की चाबी
2014 में गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय टीम की बैठक में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया गया था, जिसके लिए विजय शंखनाद रैली मेरठ से शुरू की गई। पश्चिम उप्र की ध्रुवीकरण की उर्वर सियासत में भाजपा तेजी से बढ़ी। पार्टी ने पश्चिम क्षेत्र की सभी 14 लोकसभा सीटों को जीत लिया था। इसी लहर पर सवार होकर पार्टी ने 2017 में पश्चिम की 71 विधानसभा सीटों में से 51 में जीत दर्ज की, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन से भाजपा सात सीटें हार गई। इसका असर 2022 विधानसभा चुनाव तक रहा, जबकि भाजपा 71 में से सिर्फ 40 सीटें जीत सकी। पश्चिमी उप्र में डगमगाती नाव देखकर भाजपा की केंद्रीय इकाई ने रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को सहारनपुर, बिजनौर नगीना जैसी सीटों को साधने का लक्ष्य दिया, वहीं अमरोहा, संभल व मुरादाबाद में भी सूरमा उतार दिए गए।
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राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वह पश्चिमी उप्र में ध्रुवीकरण की काट में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का तार छेड़कर विरोधियों के लिए नया चक्रव्यूह रचेंगे। जनसभा में मोदी रामलला, सनातन धर्म, चंद्रयान, आदित्य-एक समेत राष्ट्रगौरव के कई विषयों का स्पर्श करते हुए पश्चिम यूपी के स्थानीय बिंदुओं को भी समेटने का प्रयास कर सकते हैं। पश्चिमी उप्र से बड़ी संख्या में युवक सेना एवं अन्य पुलिस बलों में सेवारत हैं।
जातीय तटबंध तोड़ने पर होगा फोकस
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबों की चार जातियों का दांव खेलकर विपक्षियों का ओबीसी कार्ड फेल कर दिया। वह पश्चिमी उप्र में जाट-गुर्जर, ओबीसी और दलित में बंटे वोटों का एक छत के नीचे लाने का अहम प्रयास कर सकते हैं। रालोद पहलवानों और खेतीबाड़ी के मुद़दों के जरिए युवकों व किसानों को साधने में जुटा है, वहीं सपा से गठबंधन है। बसपा स्वतंत्र लड़ेगी, जबकि कांग्रेस अब तक असमंजस में है। पश्चिमी उप्र की कई सीटों पर दलित एवं मुस्लिम मिलकर भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं, जिसे रोकने के लिए पार्टी कोई विशेष रणनीति तय करेगी।
2014 से पश्चिम के पास जीत की चाबी
2014 में गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय टीम की बैठक में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया गया था, जिसके लिए विजय शंखनाद रैली मेरठ से शुरू की गई। पश्चिम उप्र की ध्रुवीकरण की उर्वर सियासत में भाजपा तेजी से बढ़ी। पार्टी ने पश्चिम क्षेत्र की सभी 14 लोकसभा सीटों को जीत लिया था। इसी लहर पर सवार होकर पार्टी ने 2017 में पश्चिम की 71 विधानसभा सीटों में से 51 में जीत दर्ज की, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन से भाजपा सात सीटें हार गई। इसका असर 2022 विधानसभा चुनाव तक रहा, जबकि भाजपा 71 में से सिर्फ 40 सीटें जीत सकी। पश्चिमी उप्र में डगमगाती नाव देखकर भाजपा की केंद्रीय इकाई ने रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को सहारनपुर, बिजनौर नगीना जैसी सीटों को साधने का लक्ष्य दिया, वहीं अमरोहा, संभल व मुरादाबाद में भी सूरमा उतार दिए गए।